केसीआर की मोदी को ललकार!

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हरिशंकर व्यास
तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने रविवार को गजब बात कही। प्रेस कांफ्रेंस करके इंदिरा गांधी के आपातकाल का हवाला देते हुए कहा कि वे हिम्मतवान थी जो घोषणा करके इमरजेंसी लगाईं, जबकि आज नरेंद्र मोदी ने तानाशाही बना रखी है और अघोषित आपातकाल है। उन्होंने आगे कहा कि भारत के इतिहास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा कमजोर प्रधानमंत्री कभी नहीं हुआ। भारत भारी खतरे की और बढ़ रहा है। इसे तुरंत रोकना होगा। देश के नौजवानों, लोगों और बुद्धिजीवियों को यदि भारत बचाना है तो भाजपा को लात मार बाहर करना होगा। यहीं एक मात्र तरीका है। मोदी सरकार लोकतंत्र में नहीं, बल्कि तानाशाही में विश्वास करती है।

चंद्रशेखर राव उर्फ केसीआर ने और भी बहुत कुछ बोला। अपने को पते की बात यह लगी कि इंदिरा गांधी मर्द नेता थीं जो घोषणा करके इमरजेंसी लगाई, जबकि नरेंद्र मोदी लोकतंत्र के ढोंग में सीबीआई, ईडी, आयकर जैसी एजेंसियों और विपक्षी सरकारों में तोड़-फोड़ करवा कर खौफ, आतंक की तानाशाही बनाए हुए हैं। केसीआर ने इन बातों का खुलासा करते हुए एकनाथ शिंदे का भी हवाला दिया। मतलब मोदी ईडी जैसी एजेंसियों से एकनाथ शिंदे जैसे पैदा करते हैं और बातें लोकतंत्र, शुचिता व नैतिकता की करते हैं!

बेचारे केसीआर या बेचारे उद्धव ठाकरे, शरद पवार, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, स्टालिन आदि आदि। इन नेताओं को समझ में नहीं आ रहा है कि नरेंद्र मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया में छल, झूठ, कपट, भय, कोतवालों से हिंदुओं पर राज करना इतिहास का वह बदला है, जिसे हिंदू सदियों झेलता आया है। हिंदू ऐसे ही राजभोगी चरित्र के हैं। इसे समझते हुए ही नरेंद्र मोदी का चक्रवर्ती राज बना है। केसीआर, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी या लेफ्ट व कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को यह नई राजनीति क्यों समझ नहीं आ रही है?  वे 2014 से पहले की राजनीति से क्यों चिपके हुए है? उद्धव ठाकरे क्यों भलेपन से राज करते रहे?  एकनाथ शिंदे दिल्ली सल्तनत के ताबेदार बने तो इसलिए क्योंकि वे उद्धव ठाकरे की बजाय ईडी आदि से डरे हुए थे। न धंधा हो रहा था और न सुरक्षा थी।

नरेंद्र मोदी का भारत आइडिया वह है जो हिंदू इतिहास के पोर-पोर में लिखा हुआ है। खैबर के दर्रे से पांच सौ मुसलमान घुड़सवार या दस-बीस हजार अंग्रेज भारत आ कर करोड़ों हिंदुओं पर राज करते थे तो सबका रामबाण मंत्र शहर का कोतवाल था। नरेंद्र मोदी ने भारत इतिहास से इतना ही जाना है कि हिंदू बिना रीढ़ की हड्डी के हैं। वे सत्ता के या तो भक्त, भूखे होंगे या खौफ से कंपकंपाते हुए शरीर। इसी सत्य में नरेंद्र मोदी और संघ परिवार पिछले आठ वर्षों से अरूणाचल प्रदेश से लेकर गोवा तक सत्ता बनाए हुए है। तभी मुगलों, मुसलमानों, अंग्रेजों, कांग्रेस के वक्त नहीं, बल्कि अब सचमुच में मोदी-संघ परिवार के वक्त देश-दुनिया के आगे यह प्रमाणित हुआ है कि हिंदुओं की हिंदू राजनीति कितनी सस्ती, बिकाऊ, बिना रीढ़ की हड्डी तथा बिना वफादारी व बिना वैचारिकता के है। सन् 2022 की लोकतंत्र नौटंकी में भी वह सब है जो अकबर, औरंगजेब की दिल्ली सल्तनत के समय तलवार की खनक से हुआ करता था।

हां, अकबर के दरबार में जयपुर के राजा मानसिंह मनसबदार थे और सन् 2022 में एकनाथ शिंदे यदि मोदी के दरबार के मनसबदार बने हैं या पूर्व कांग्रेसियों से लेकर दूसरी पार्टियों के असंख्य नेता नरेंद्र मोदी और संघ परिवार की पालकी ढोते हुए हैं तो यह उस हिंदू इतिहास की निरंतरता का प्रमाण है, जिसमें स्वत्व, स्वाभिमान, निर्भयता, निडरता, वैचारिक प्रतिबद्धता, देशभक्ति, नैतिकता, सत्यता, ईमानदारी का बारह सौ सालों से कोई अर्थ नहीं है।

सोचें, भारत में सत्ता और पैसे की मौजूदा भूख पर। इंदिरा गांधी के बाद के चरणों में हिंदू राजनीति में सत्ता लोलुपता और धन-पैसे व झूठ की 140 करोड़ लोगों में जो प्राण प्रतिष्ठा हुई है, वैसा क्या दुनिया के किसी और देश में होता हुआ दिखा है? जिस पाकिस्तान और चीन को हम हिंदू गालियां देते हैं उस पाकिस्तान में भी अपनी-अपनी राजनीति को लेकर मुसलमान नेता ईमानदार हैं। शरीफ, भुट्टो, इमरान, मुस्लिम लीग, इस्लामी पार्टियों के नेताओं में वह बिकाउपना, निर्लज्जता, पैसे से चुनाव, लोकतंत्र, सरकारें बनाने-बिगाडऩे वैसा कोई विकास नहीं है, जैसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह और उनके भक्त चाणक्य नीति के हवाले भारत की विश्व गुरूता बतलाते हुए उसे न्यायोचित ठहरा रहे हैं।

मेरे साथ 40-45 सालों से भारत की राजनीति के बतौर एक गवाह नेता त्यागीजी हैं। एक दिन वे किसी होटल में बैठे हुए थे। वहां का मैनेजर उनसे मिलने आया। उसे देख उन्होंने पूछा- क्या बात है बहुत डाउन लग रहे हो? मैनेजर ने कहा- जी, जरा रीढ़ की हड्डी में तकलीफ है। त्यागीजी ने गंभीरता से सुझाया- रीढ़ की हड्डी निकलवा लो, क्या जरूरत है इसकी!
त्यागीजी का कहा लुटियन दिल्ली का सत्य था। यहीं सत्य दिल्ली के बारह सौ साल का इतिहास है। खैबर पार से आए गुलाम वंश के लोगों ने भी यदि हिंदुओं को गुलाम बनाया तो जाहिर है ऐसा होना हिंदुओं के रीढ़विहीन, बिना खुद्दारी के ही तो था। विचारें कि दिल्ली में मोदी की कैबिनेट में क्या कोई रीढ़ की हड्डी लिए हुए मंत्री है? क्या भाजपा, संघ परिवार और दिल्ली के अफसरों-कोतवालों में किसी की राजा के आगे रीढ़ की हड्डी है? अब यह तर्क फिजूल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्योंकि तख्त पर जहांपनाह अकबर और पृथ्वीराज चौहान के वारिस हैं इसलिए वे सर्वज्ञ हैं तो उनके आगे रीढ़ की हड्डी जरूरी नहीं है।

दरअसल इतिहास की मार ने हिंदुओं को इतना मारा है कि सावरकर के आइडिया में हिंदू राजनीति की लाठी जब बनना शुरू हुई थी तो ख्याल नहीं रहा कि बिना बुद्धि और दिमाग के रीढ़ की हड्डी खड़ी और खुद्दार नहीं हो सकती। तब उसका होना न होना बेमतलब रहेगा। दिमागविहीन व रीढ़हीन अस्त्तित्व है तो आप कितनी ही फू-फां करे, फूफकारें मारें अंतत: सब कुछ छल-कपट-झूठ-भयाकुल व्यवहार में ढला होगा।

और इसे खुद आठ सालों से नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री साबित करते हुए हैं। केसीआर ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भारत-चीन सीमा पर गतिरोध का जिक्र करते हुए कहा- भारत-चीन की सीमा कोई प्रयोग करने की लैबोरेटरी नहीं है। यह बात तमाम मामलों में लागू है। आठ साल से हिंदू हित, हिंदू राष्ट्र, गौरक्षा, मुस्लिम आबादी, हिंदुओं के देवी-देवताओं की गरिमा और चीन, पाकिस्तान को औकात बता देने का नैरेटिव है। लेकिन यदि हिम्मत, कमिटमेंट होता तो क्या हिंदू राष्ट्र कहने, बनाने की सिर्फ बातें होतीं? मोदी सरकार में न अखिल भारतीय गौरक्षा कानून बनाने का साहस हुआ और न अखिल भारतीय समान नागरिक संहिता की हिम्मत है। चीन ने भारत के इलाके पर कब्जा किया, दो साल से सीमा पर खरबों रुपए के खर्च से सेना को तैनात करके चीन को आंखें दिखा रहे हैं लेकिन न चीन से अपना इलाका खाली कराने की हिम्मत है और न उससे आयात बंद करने के फैसले की हिम्मत। सर्वाधिक शर्मनाक यह ताजा प्रकरण है जो एक कतर देश ने भारत के उप राष्ट्रपति का भोज रद्द किया नहीं कि भाजपा ने तुरंत नूपुर शर्मा, नवीन जिंदल को बाहर निकाल दुनिया में, मुसलमानों में साबित किया कि हां, इन्होंने पैगंबर का अपमान किया था। मगर फिर चोरी-छुपे, सप्रीम कोर्ट के कहे के खिलाफ हल्ला बनवा कर हिंदुओं को बहलाने की कोशिश भी है! ओआईसी याकि इस्लामी देशों को सबक सिखाने की हिम्मत नहीं है लेकिन देश के भीतर हिंदू-मुस्लिम बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाना!

तभी केसीआर का कहना सही है कि इंदिरा गांधी साहसी थीं। उनकी सत्ता को लोकतंत्र से खतरा हुआ तो डंके की चोट घोषणा करके इमरजेंसी लगाई। उनमें घोषणा का साहस था तो बाद में चुनाव कराने का भी साहस था। चुनाव हारीं तो विपक्ष में बैठने का साहस था। लोकतंत्र से वापिस चुनाव जीतने का साहस था। इंदिरा गांधी ने अपने शपथ समारोह में याह्या खान को बुलाने की नहीं सोची और न वे उनके घर पकौड़े खाने इस्लामाबाद नहीं गईं, बल्कि आधुनिक तो छोड़े पूरे इतिहास में वे भारत की पहली अकेली वीरांगना थीं, जिनकी कमान में भारत की सेना ने न केवल एक इस्लामी देश को हराया, बल्कि उसके दो टुकड़े किए। परमाणु परीक्षण कर दुनिया से मुकाबला किया। वे वाजपेयी, संघ परिवार, लेफ्ट, समाजवादी, क्षेत्रीय नेताओं, विरोधी सरकारों याकि लोकतांत्रिक तकाजे में रत्ती भर भी वैसी बेशर्मी, खरीद-फरोख्त और धनबल से राजनीति करते हुए नहीं थीं, जैसी पिछले आठ वर्षों का आम व्यवहार है। उनके मुंह से कभी नहीं निकला कि किसी प्रदेश में प्रदर्शन-विरोध हुआ तो उससे घबरा कर लौट कर एयरपोर्ट पर अफसरों से कहें कि अपने सीएम को थैंक्स कहना, मैं जिंदा लौट रही हूं। और फिर महामृत्युंजय यज्ञ कराएं।

जो हो, केसीआर ने दो प्रधानमंत्रियों की हिम्मत, उनके शासन के अंदाज, इमरजेंसी की जो बातें कही हैं वह मौजूदा वक्त का ही नहीं, बल्कि देश, लोगों के मिजाज और भविष्य का वह सत्य है जिस पर जितना सोचेंगे कम होगा।


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