सबको पता है कि राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा जीत नहीं पाएंगे। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का जीतना तय है। इसके बावजूद यशवंत सिन्हा ने बहुत कमाल की लड़ाई लड़ी। अपनी तमाम कमियों और सीमाओं के बावजूद उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक विपक्ष को एकजुट करने का काम किया। हालांकि तब भी किसी न किसी मजबूरी से कुछ विपक्षी पार्टियां उनको वोट नहीं दे रही हैं। इसके बावजूद वे सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाले विपक्षी उम्मीदवारों की सूची में शामिल हो सकते हैं। उनको 38 फीसदी वोट मिल सकता है। मतदान के दिन तक के आंकड़ों के मुताबिक एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पास 61.6 फीसदी वोट थे। अंतिम नतीजे 21 जुलाई को आएंगे।
सिर्फ दो बार विपक्षी उम्मीदवारों को 35 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। पहली बार 1967 में निर्दलीय के सुब्बा राव को 43.5 फीसदी वोट मिला था। तब डॉक्टर जाकिर हुसैन 56.2 फीसदी वोट लेकर जीते थे। दूसरी बार 1969 में नीलम संजीव रेड्डी को 49.1 फीसदी वोट मिला था। लेकिन 1969 के चुनाव को सामान्य चुना में नहीं गिना जा सकता है क्योंकि उसमें दोनों उम्मीदवार सत्ता समर्थित थे। कांग्रेस पार्टी ने निर्दलीय उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी का समर्थन किया था, जबकि इंदिरा गांधी ने निर्दलीय वीवी गिरी को समर्थन दिया था। अब तक के इतिहास के सबसे नजदीकी मुकाबले में वीवी गिरी 50.9 फीसदी वोट लेकर जीते थे और नीलम संजीव रेड्डी को 49.1 फीसदी वोट मिला था। बाद में 1977 के चुनाव में वहीं नीलम संजीव रेड्डी पहले और इकलौते निर्विरोध राष्ट्रपति बने।
बहरहाल, 1952 के पहले राष्ट्रपति चुनाव से लेकर 2017 के 14वें राष्ट्रपति चुनाव सिर्फ एक बार किसी भी विपक्षी उम्मीदवार को 35 फीसदी वोट मिला है। पिछले यानी 2017 के चुनाव में विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को 34.35 फीसदी वोट मिले थे। उनसे पहले 2007 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार भैरोसिंह शेखावत को 34.2 फीसदी वोट मिले थे और 65.8 फीसदी वोट के साथ प्रतिभा पाटिल जीती थीं।
उससे पहले प्रणब मुखर्जी के खिलाफ भाजपा के नेतृत्व वाले विपक्ष ने पीए संगमा को उतारा था, जिनको 30.07 फीसदी वोट मिले थे। उनसे पहले शेखावत को 34.4 फीसदी वोट मिले थे। उससे पहले 2002 एपीजे अब्दुल कलाम और 1997 में केआर नारायणन को भाजपा और कांग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों ने समर्थन दिया था। दोनों 90 फीसदी या उससे ज्यादा वोट लेकर जीते थे। राष्ट्रपति के पहले तीन चुनावों में विपक्षी उम्मीदवार बहुत कम वोट ले पाए थे। पहले चुनाव में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद मुकाबले केटी शाह को 15 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन उसके बाद 1957 में राजेंद्र प्रसाद के दूसरे चुनाव में और 1962 के एस राधाकृष्णन के चुनाव में विपक्षी उम्मीदवारों को एक से दो फीसदी वोट मिले थे।