Tuesday, November 28, 2023
No menu items!
Google search engine
Homeसंपादकीयनेता वहीं सच्चा जो विचारवान!

नेता वहीं सच्चा जो विचारवान!

हरिशंकर व्यास
अद्भुत! एक 87 वर्षीय बूढ़े रिटायर राष्ट्रपति में इतनी दिमागी उर्वरता! संयोग कल चैनल बदलते-बदलते ‘अल जजीरा’ पर उरुग्वे के पूर्व राष्ट्रपति जोस मुजिका को सुना और अरसे बाद किसी नेता के लिए वाह निकली! लगा कि दक्षिण अमेरिका की राजनीति और नेताओं का जवाब नहीं है। यों भारत के हम लोगों के लिए उस महाद्वीप का कोई अर्थ नहीं है। हम कुंए के मेढक़ हैं और हममें यह दिलचस्पी बन ही नहीं सकती जो यह जानें कि वैचारिक तौर पर दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका के पौने दौ अरब लोग कैसी अवस्था में हैं? दरअसल हमारी खुद की कोई अवस्था हो तो हस दूसरों पर सोचें! उरुग्वे के जोस मुजिका की दिमागी उर्वरता वैश्विक सरोकारों से भरी हुई है। वे इंटरव्यू में पृथ्वी और मानव के भविष्य की चिंता, रूस-यूक्रेन लड़ाई से लेकर दक्षिण अमेरिका के लोगों और देशों पर गहराई और बेबाकी से बोलते हुए थे। छोटे-छोटे वाक्यों (इंटरव्यू स्पेनिश में था इसलिए अंग्रेजी में अनुदित एक-दो लाइन का सार) से जो जाना तो लगा कि कुछ भी हो राजनीति की क्रांतिकारी धारा से समाज का बौद्धिक वैभव तो बनता है।

ध्यान रहे जोस मुजिका जवानी में क्रांतिकारी थे। उस वक्त के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘वह विश्वास का समय था, उसके लिए राजनीति की थी और अब यह गम है कि राजनीति कहां है’! निकारागुआ के राष्ट्रपति ओर्टेगा के निरंतर सत्ता पर बने रहने, उनकी तानाशाही को ले कर जोस मुजिका कि टिप्पणी थी, ‘अक्सर क्रांति ही क्रांति को खा जाती है’।
मुजिका साठ और सत्तर के दशक में उरुग्वे के टुपामारोस नाम के वामपंथी सशस्त्र संगठन के छापामार थे। उन्हें छह बार गोली लगी। सैनिक तानाशाहों ने उन्हें 14 साल जेल में रखा। लोकतंत्र की बहाली के बाद वे सन् 2010 में उरुग्वे के राष्ट्रपति बने। पांच साल राज किया। सन् 2015 में यह कहते हुए उन्होंने राजनीति से संन्यास लिया कि उन्हें अपने तीन टांग वाले पालतू कुत्ते और चार पैर की पुरानी बीटल गाड़ी के साथ समय बिताना है!

वे राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन में नहीं रहे। उन्होंने घोड़ा-गाड़ी, लाल बत्ती नहीं ली। अपनी पुरानी बीटल कार में ही आते-जाते थे। उन्होंने दो कमरे के मकान में रह कर राष्ट्रपति का पद संभाला और तब भी खेती की कमाई से जीवनयापन किया। खुद अपने कपड़े धोते थे। कुएं से पानी भरते थे। अपनी तन्ख्वाह का 90 प्रतिशत हिस्सा दान कर देते थे। उनके कार्यकाल में उरुग्वे ने बहुत तरक्की की। कार्यकाल के दौरान उन्होंने समाज में असमानता घटाने में काफी दिमाग लगाया।
इस मामले में वे 87 साल की उम्र में भी खदबदाते हुए हैं। तभी उन्होंने इंटरव्यू में धन, राजनीति और असमानता को लेकर बहुत बोला। कहना था, ‘सब इस थ्योरी की दुहाई देते हैं कि अमीरों की अमीरी बढ़ेगी तो अपने आप संपन्नता ट्रिकल डाउन हो कर नीचे तक जाएगी। अमीरों का बढऩे से आम लोगों का जीवन भी बेहतर होगा। इसलिए सभी देशों में अमीरों पर टैक्स लगाने की सोच खत्म हो गई है। जबकि अमीरों की अमीरी बढऩे के बावजूद समाज में गरीबी कम नहीं हो रही है, असमानता बढ़ती जा रही है’।

जोस मुजिका के कार्यकाल की खूबी रही जो क्रांतिकारिता के बावजूद उन्होंने लोकतंत्र की तासीर में देश चलाया। अपने सादे-सहज जीवन में दुनिया के सर्वाधिक गरीब राष्ट्रपति के नाते, जहां वे देश के रोल मॉडल बने वहीं अमेरिका सहित तमाम दक्षिणपंथी देशों, विश्व मंचों पर अपने नैतिक बल से यह पूछते हुए थे कि लोग यदि समृद्ध नहीं होंगे तो लोकतंत्र का

फायदा क्या?
दुनिया की मौजूदा दशा में उनका कहना है कि महामारी के काल का क्या अनुभव निकला? जो बाइडेन ने शपथ भाषण में कोविड-19 वैक्सीन के पेटेंट प्रोटेक्शन को हटाने की बात कही थी लेकिन क्या हुआ? निश्चित ही ज्ञाता का ज्ञान उसका है मगर जब पूरी मानवता और जीवन का मसला है तो वैश्विक समाज को उसे सर्वसुलभ बनाने का फैसला करना चाहिए। खाद्यान्न संकट है, महंगाई और विश्व आर्थिकी संकट में है तो नेताओं ने पहले यह क्यों होने दिया कि अंधाधुंध करेंसी छाप कर बांटी। बिना सोचे-समझे मुद्रास्फीति की स्थितियां पहले ही बना ली थी। ऊपर से रूस-यूक्रेन की व्यर्थ की लड़ाई। यूक्रेन के साथ पुतिन लगातार लड़ते आए हैं। वे वियना सम्मेलन आदि बैठकों में कहते रहे हैं कि रूस अपनी सुरक्षा को ले कर चिंता में है। उसे यूरोपीय देशों को समझना चाहिए था। यूरोपीय देश यदि समझदारी से चलते तो लड़ाई के हालात नहीं बनते। रूस ने नाजायज इच्छाएं बनाईं और यही समस्या सभी ओर है। असली मुद्दा है कि राजनीति और धन को ले कर नए ढंग से सोचना होगा, नए तरीके बनाने होंगे।

संदेह नहीं कि जोस मुजिका उस श्रेणी के नेता-विचारक हैं, जिनसे रियलिटी मुंहफट अंदाज में जाहिर होती है। राष्ट्रपति रहते हुए भी सन् 2012 की रियो कांफ्रेंस में और फिर संयुक्त राष्ट्र में बेबाकी से उनके सवाल होते थे। जैसे यह कि यदि जर्मनी के परिवारों की तरह ही इंडियन परिवारों ने कारें रखी तो पृथ्वी का क्या होगा? या यह कि जरा चेक करो ‘कितनी ऑक्सीजन बची है’? ताजा इंटरव्यू में उनका कहना था सभी तरफ वेस्टेज, बरबादी है। बिना तामझाम, शान-शौकत के न नेता काम करते हैं और न सरकारें। राष्ट्रपतियों और उनके शिखर सम्मेलनों के खर्चों को खत्म किया जाना चाहिए। बेसिक काम लोगों और पृथ्वी की चिंता का है। देशों पर पाबंदियां ठीक नहीं हैं। इससे लोग सफर करते हैं। नेता और सरकारों का कुछ नहीं बिगड़ता और लोग सब तरफ सफर करते हैं। वेनेजुएला, निकारागुआ और रूस सब पर पाबंदियों से लोगों को ही हर तरह से सफर करना पड़ रहा है भले वह मंहगे तेल, अनाज की मंहगाई व आर्थिकियों की बरबादी से हो।
गौरतलब है कि मुजिका ने अपने कार्यकाल में ऊरुग्वे के एक इलाके की रियलिटी में मारिजुआना की बिक्री आम कर दी। गे शादी को कानूनी बनाया। लोगों में अपने व्यवहार से यह हवा बनाई कि जिंदगी को ज्यादा जटिल नहीं बनाएं। न्यूनतम आवश्यकताओं में जीना चाहिए। राष्ट्रपति भवन में नहीं रहने के पीछे मुजिका का तर्क था कि यह ‘निज स्वतंत्रता के लिए लडऩे जैसा है’। क्योंकि यदि भौतिक सुविधाओं व तामझाम में बंधता गया तो उसी की कोशिशों में वक्त गुजरता हुआ होगा। मैं अभी चालीस साल पुराने पड़ोस, उन्हीं लोगों के बीच रह रहा हूं तो सब आसान और मजेदार बना रहेगा। राष्ट्रपति होने का यह अर्थ तो नहीं है कि मैं अब आम आदमी नहीं रहा।

सचमुच घासफूस, लोहे की बेंच और कुर्सी के परिवेश को टीवी स्क्रीन पर देख कर ही मुझे कौतुक हुआ कि यह बेतरतीब, बूढ़ा चेहरा क्या बोलता हुआ है? मुजिका ने पृथ्वी की सेहत की चिंता के अलावा यह भी कहा कि भविष्य ज्ञान और नॉलेज इकोनॉमी का है। इसके लिए यदि क्वालिटी वाली शिक्षा व्यवस्था नहीं बनाई तो देशों का भविष्य नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी जरूरतों पर ही सरकारों का खर्चा बढऩा चाहिए। हम उस वक्त में रह रहे हैं, जब रिसोर्सेज अत्यधिक बढ़े हैं लेकिन उससे भी अधिक अनुपात में अमीरों के पास संपदा का संग्रहण है। यही राजनीति की मुख्य समस्या और चुनौती है। धन का संग्रह बढऩा मतलब पॉवर का संग्रह बढऩा और फिर उसके नतीजे।
कुल मिलाकर पते की बात एक विश्व नागरिक, आम आदमी जोस मुजिका को सुन और उन्हें जान कर अहसास हुआ कि जो नेता विचारवान होता है वहीं सही नेतृत्व और मानवता को दिशा बतला सकता है!

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

ताजा खबरें