लोकसभा के चुनावी महासमर की दुंदुभि बज चुकी है। उत्तराखंड की रणभूमि में कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के सामने डटे हैं। ऐसे में जिन सूरमा कार्यकर्ताओं पर कांग्रेस को भरोसा था कि चुनावी नैया के खेवनहार बनेंगे, वे बीच में ही हाथ झटक कर पार्टी को बाय-बाय कर रहे हैं। अब जब चुनाव में कुछ ही दिन शेष नहीं रह गए हैं, ऐसे समय में भी यह क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है।
नेताओं में मची इस भगदड़ से कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व, दोनों हतप्रभ हैं। जनाधार बचाने के साथ ही जनता में पैठ रखने वाले नेताओं को पार्टी के साथ बनाए रखने का संकट गहरा गया है। आश्चर्यजनक यह भी है कि जिन नेताओं और कार्यकर्ताओं के जाने का पूर्वाभास पार्टी को रहा, उन्हें मनाने अथवा रोकने या साधने के लिए इस बार समय रहते असंतोष प्रबंधन के प्रयास धरातल पर दिखाई नहीं दिए। जीत दर्ज करने के लिए पूरी ताकत लगा रही पार्टी के सामने कठिन होती जा रही इन परिस्थितियों से पार पाने की चुनौती खड़ी हो गई है। 18वीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर उत्तराखंड में कांग्रेस के सामने धुर विरोधी भाजपा लगातार नई परेशानी उत्पन्न कर रही है। कांग्रेस के नेता एक के बाद एक पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। पिछले दो लोकसभा चुनाव में हार के क्रम को तोड़कर तीसरे चुनाव में जीतने और खाता खोलने का दबाव प्रमुख विपक्षी दल पर पहले से ही बना हुआ है। जनाधार का यह संकट अब पार्टी के मजबूत नेताओं के भरोसे को डिगाने लगा है। प्रदेश की सभी संसदीय सीटों पर नेताओं के छोड़ने से पार्टी को क्षति पहुंची है। कांग्रेस को उसके अपनों ने ही बड़ा झटका दे दिया।
नैनीताल-ऊधम सिंह नगर के संसदीय क्षेत्रों में पूर्व नगर अध्यक्ष,पूर्व मंडी समिति अध्यक्ष और कई पार्षदों ने चुनावी युद्ध तेज होते ही पार्टी छोड़ दी। सत्ताधारी दल भाजपा ने कांग्रेस में तोड़फोड़ कर चुनाव से ठीक पहले विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को भी निशाने पर लिया है। इसे मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, टूट-फूट का अंदेशा होने के बाद भी कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश संगठन समय रहते कदम नहीं उठा पाए। इस चुनाव में कांग्रेस को पटखनी देने की भाजपा की रणनीति की काट ढूंढने में देरी स्पष्ट नजर आई है, साथ ही बाद में परिस्थितियों को संभालने के लिए के लिए आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता महसूस नहीं की जा रही है। विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में बड़े नेताओं का कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना कांग्रेस के चुनाव जीतने की संभावना के दृष्टिगत किसी सदमे से कम नहीं है। नैनीताल-ऊधम सिंह नगर के संसदीय क्षेत्र में पार्टी को तब बड़ा झटका लगा, जब इस क्षेत्र में बीते रोज (कल शाम ) सैकड़ो नेताओं और कार्यकर्ताओं ने त्यागपत्र देकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया। फिलहाल अपने के साथ छोड़ने और विभिन्न कारणों से कांग्रेस इस समय पूरी तरह से भयभीत हैं। नेताओ और कार्यकर्ताओं के पार्टी छोड़ने पर प्रभाव पड़ता ही है,वही इससे निष्ठावान कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का अवसर भी उपलब्ध हो रहा है।