मानसून में आपदा और अतिवृष्टि ने उत्तराखंड के अन्नदाता के सिर पर मुसीबतों का पहाड़ गिरा दिया है। राज्य के कई जिलों में खेतों में खड़ी मंडुवा एवं धान की फसल चौपट हो गई है। कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस महीने 2,355 हेक्टेयर से अधिक फसलों को नुकसान हुआ है। प्रदेश में मलबा एवं अतिवृष्टि से फसलों को जो नुकसान हुआ है, उसने अन्नदाता की आर्थिक परेशानी बढ़ा दी है। पौड़ी, रुद्रप्रयाग, ऊधमसिंह नगर और चंपावत जिले में सिंचित और असिंचित क्षेत्र की फसल खराब हुई है। सबसे अधिक नुकसान ऊधमसिंह नगर जिले में हुआ है। इस जिले के सात विकासखंडों खटीमा, सीतारगंज, रुद्रपुर, गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर एवं जसपुर में अतिवृष्टि से फल, सब्जी एवं धान की 2345 हेक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। पौड़ी जिले के जयहरीखाल में मंडुवे की .3 हेक्टेयर, रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि में धान की .04 हेक्टेयर फसल को नुकसान हुआ है। इसके अलावा चंपावत में धान की पांच हेक्टेयर फसल खराब हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि तीन जुलाई को रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि में बादल फटने और आठ जुलाई को पौड़ी के जयहरीखाल में अतिवृष्टि से फसलों को नुकसान हुआ है। विस्तृत क्षति के आकलन के लिए कृषि, उद्यान एवं राजस्व विभाग की ओर से सर्वे का काम किया जा रहा है।
प्रदेश में आपदा और अतिवृष्टि से फसलें खराब होने से अन्नदाता जहां आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं, वहीं, कृषि विभाग का कहना है कि प्रभावितों को अभी मुआवजे का मरहम नहीं लग पाएगा। कृषि विभाग के निदेशक केसी पाठक बताते हैं कि फसलों को हुए नुकसान का विस्तृत सर्वे कराया जा रहा है। विभाग को अभी जो रिपोर्ट मिली है, उसमें फसलों की क्षति 33 प्रतिशत से कम है, जबकि केंद्र सरकार का मुआवजे को लेकर मानक 33 फीसदी से अधिक के नुकसान का है। कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी, उत्तरकाशी और चमोली प्रदेश के ऐसे जिले हैं, जिनमें आपदा और अतिवृष्टि से अभी कोई नुकसान नहीं हुआ।