Tuesday, April 16, 2024
No menu items!
Google search engine
Homeसंपादकीयपरिवारों के सहारे परिवारवाद का विरोध

परिवारों के सहारे परिवारवाद का विरोध

हरिशंकर व्यास
कांग्रेस मुक्त भारत के बाद अब भाजपा का नारा है डायनेस्टी मुक्त भारत। तेलंगाना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शुरू होने से पहले पार्टी ने यह एजेंडा तय किया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुख्य रूप से इस मसले पर विचार होना है। नरेंद्र मोदी परिवारवाद का विरोध पहले से करते रहे हैं लेकिन इस साल छह अप्रैल को भाजपा के स्थापना दिवस के मौके पर उन्होंने एक एजेंडे के तौर पर इसे अपनाया और कहा कि परिवारवादी पार्टियां लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। उसके बाद वे निरंतर इस मसले पर बोलते रहे। अब भाजपा सांस्थायिक रूप से इस मुद्दे को राजनीति के केंद्र में ला रही है। मजेदार बात है कि भाजपा ने परिवारवाद की अपनी एक परिभाषा की गढ़ ली है। जब उसको याद दिलाया जाता है कि राजनीतिक परिवारों के अनेक लोग उसकी अपनी पार्टी में हैं तो वह बताती है कि वे अध्यक्ष नहीं हैं और न पार्टी की कमान उनके हाथ में है। अपने को अलग दिखाने के लिए भाजपा ने नेताओं को परिवार में एक ही टिकट देने का नियम भी बनाया है।

असल में भाजपा को कांग्रेस के परिवारवाद का विरोध करना है और उसको पता है कि राज्यों में उन्हीं प्रादेशिक क्षत्रपों से ज्यादा कड़ा मुकाबला है, जिनकी कमान एक परिवार के हाथ में है। जैसे बिहार में लालू प्रसाद का परिवार राजद की कमान संभालता है और सबने देख लिया कि खत्म होने के करीब पहुंचने के बाद भी पार्टी ने फिनिक्स की तरह वापसी कर ली। आज वह बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के परिवार के कमान वाली समाजवादी पार्टी तमाम प्रयासों के बावजूद खत्म नहीं हो रही है। हारने के बाद भी उसके विधायकों की संख्या एक सौ से ज्यादा है। तमिलनाडु में डीएमके, तेलंगाना में टीआरएस, कर्नाटक में जेडीएस, झारखंड में जेएमएम, महाराष्ट्र में शिव सेना, पंजाब में अकाली दल आदि ऐसी पार्टियां हैं, जिनका नेतृत्व एक परिवार के हाथ में है।

सो, भाजपा ने इन पार्टियों को निपटाने का तरीका निकाला है। एक तरीका पार्टी की कमान संभालने वाले परिवारों में फूट डालने का है, दूसरा तरीका एक परिवार के मुकाबले दूसरा परिवार खड़ा करने का है और तीसरी तरीका राजनीतिक परिवारों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर उनकी साख बिगाडऩे और कमजोर करना का है। बहुत बारीकी से देखे बगैर भी पता है कि हर राजनीतिक परिवार के ऊपर केंद्रीय एजेंसियों की नकेल कसी हुई है। लेकिन किसी को पकड़ कर जेल में नहीं डाला जा रहा है। उन पर कानूनी कार्रवाई करके सजा दिलाने से ज्यादा उनके कथित कारनामों का प्रचार कराया जा रहा है। एजेंसी की कार्रवाई की खबरें लीक करा कर बताया जा रहा है कि अमुक नेता कितना भ्रष्ट है। उस कथित भ्रष्ट नेता को जेल में नहीं डाला जा रहा है उसकी गर्दन पर तलवार लटकाई जा रही है। झारखंड में पूरे शिबू सोरेन परिवार पर तलवार लटकी है तो बिहार में लालू परिवार, कर्नाटक में देवगौड़ा परिवार, तमिलनाडु में करुणानिधि परिवार, उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी परिवार सहित ज्यादातर नेताओं के परिजनों के ऊपर केंद्रीय एजेंसियों की तलवार लटकी है।

दूसरी तरफ हर नेता के परिवार में फूट डालने की राजनीति भी हो रही है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की बहू भाजपा में शामिल हो गई हैं और मुलायम के भाई शिवपाल यादव शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन भाजपा के काम आ रहे हैं। हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला का परिवार टूट गया है और उनके एक बेटे अजय चौटाला अपनी अलग पार्टी बना कर भाजपा के साथ राजनीति कर रहे हैं। महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार कमजोर हो गया है और शिव सेना में विभाजन करा कर भाजपा ने एक शिव सैनिक को मुख्यमंत्री बना दिया है। झारखंड में शिबू सोरेन के तीसरे बेटे बसंत सोरेन के बारे में भाजपा के नेता अनौपचारिक रूप से बताते रहते हैं कि वे और उनकी पत्नी भाजपा के संपर्क में हैं। चाहे परिवार के सहारे हो या पार्टी तोड़ कर हो या केंद्रीय एजेंसियों के सहारे हो भाजपा अपने मकसद में कामयाब हो रही है। पंजाब में अकाली दल हाशिए की पार्टी बन गई तो महाराष्ट्र में शिव सेना की स्थिति भी बहुत कमजोर हो गई। बसपा को एक तरह से भाजपा ने अपना जेबी संगठन बना लिया है और उसी तरह से अन्ना डीएमके को भी जेबी संगठन बनाने का प्रयास हो रहा है।

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_imgspot_imgspot_img

ताजा खबरें